संस्कृति एवं विरासत का अग्रदूत है – साहित्य
साहित्य किसी भी समाज की आत्मा होता है। यह न केवल उसकी संस्कृति, परंपराओं और विरासत को सहेजता है, बल्कि उन्हें अगली पीढ़ियों तक पहुँचाने का कार्य भी करता है। जब हम अपने अतीत की ओर देखते हैं, तो साहित्य हमें वहाँ तक पहुँचाने का सबसे प्रभावी साधन बनता है। भारतीय संस्कृति के मूल तत्वों को समझने के लिए वेदों, पुराणों, उपनिषदों, महाकाव्यों और लोककथाओं को पढ़ना आवश्यक हो जाता है। ये ग्रंथ केवल धार्मिक या ऐतिहासिक दस्तावेज नहीं हैं, बल्कि वे भारतीय जीवन दर्शन, नैतिकता और सामाजिक संरचना के मूलभूत आधार भी हैं। संस्कृति एक प्रवाहमान धारा है, जो समय के साथ विकसित होती रहती है, लेकिन इसकी जड़ें सदैव अपने अतीत में गहरी होती हैं। साहित्य इस प्रवाह को दिशा देने का कार्य करता है। संस्कृत साहित्य में वाल्मीकि की रामायण और व्यास की महाभारत भारतीय जीवन की गाथाएँ हैं, जिनमें संस्कृति का सार समाया हुआ है। मध्यकाल में भक्तिकालीन कवियों ने अपनी वाणी से समाज को नई दिशा दी, तो वहीं आधुनिक साहित्यकारों ने सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक मुद्दों को अपने लेखन का विषय बनाया। भारत की बहुभाषिकता भी इसकी सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा है। तमिल का संगम साहित्य, हिंदी में तुलसीदास की रामचरितमानस, बंगाली में रवींद्रनाथ टैगोर की कृतियाँ, मराठी में ज्ञानेश्वरी, पंजाबी में गुरु ग्रंथ साहिब—ये सभी अपने-अपने समय की सांस्कृतिक चेतना को संजोने वाले महत्त्वपूर्ण ग्रंथ हैं। साहित्य न केवल भाषा और विचारों की अभिव्यक्ति है, बल्कि यह एक युग का प्रतिबिंब भी है। आधुनिक साहित्य भी सांस्कृतिक संरक्षण और जागरूकता का महत्वपूर्ण माध्यम बना हुआ है। प्रेमचंद की कहानियाँ भारतीय समाज की वास्तविकता को सामने लाती हैं, तो अमृता प्रीतम और महादेवी वर्मा का लेखन नारी सशक्तिकरण और समाज में बदलाव की दिशा दिखाता है। आज भी साहित्यकार भारतीय परंपराओं और मूल्यों को बनाए रखते हुए नई विचारधाराओं के साथ लेखन कर रहे हैं। साहित्य केवल शब्दों का संयोजन नहीं है, बल्कि यह एक समाज की पहचान, उसकी सोच और उसकी धरोहर को सहेजने वाला दर्पण है। यह संस्कृति की आत्मा को जीवंत बनाए रखता है और विरासत को समय के साथ बदलते हुए भी उसका मूल स्वरूप बनाए रखता है। जिस प्रकार वृक्ष अपनी जड़ों से शक्ति प्राप्त करता है, उसी प्रकार साहित्य भी हमारी संस्कृति और विरासत को स्थायित्व प्रदान करता है। इसे सुरक्षित रखना और संवारना हमारी जिम्मेदारी है, ताकि आने वाली पीढ़ियाँ भी अपनी जड़ों से जुड़ी रहें और अपनी संस्कृति पर गर्व कर सकें।
Dr. Shiv Singh
5/1/20241 min read